
उत्तराखंड का फूलदेई त्यौहार क्या है ?
फूलदेई उत्तराखंड का एक लोकप्रिय त्योहार है जो कि हर साल चैत्र माह की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। उत्तराखंड में फूलदेई त्यौहार को बाल पर्व के भी नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस त्यौहार में बच्चों की भी एक बड़ी भूमिका होती है। जबकि बड़ों की भूमिका गुड, दक्षिणा और चावल देने की होती है। इस त्यौहार में बच्चे अपने आसपास के सारे ही घरों में जाकर, घर की दहलीज पर पुष्प चढ़ाकर उस घर के सुख समृद्धि की कामना करते हैं। पूरे ही उत्तराखंड में इस त्यौहार को बड़े ही धूम-धाम से बनाया जाता है। जहां पर बच्चों से लेकर बूढ़ो तक इस त्यौहार का आनंद लेते दिखाई देते हैं।
गढ़वाली (Garhwali) में फुलारी बच्चे फूल डालते हुए गाते हैं –
ओ फुलारी घौर.
झै माता का भौंर .
क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर .
डंडी बिराली छौ निकोर.
चला छौरो फुल्लू को.
खांतड़ि मुतड़ी चुल्लू को.
हम छौरो की द्वार पटेली.
तुम घौरों की जिब कटेली.

क्या है फूलदेई और फूलदेई का इतिहास..
फूलदेई उत्तराखंड का एक विशेष त्यौहार है। जहां पर विशेष फूलों की मान्यता भी होती है। इसमें पीले रंग के फूलों का प्रयोग किया जाता है। जिसे हम प्योंली भी कहते हैं। उत्तराखंड में फूलदेई और प्योंली से संबंधित बहुत सारी कथाएं हैं। जिनमें से कुछ कथाएं फूलदेई पर है, तो कुछ प्योंली पर। इसमें से एक लोक कथा कुछ इस प्रकार है।
प्योंली की कहानी
उत्तराखंड में प्योंली नाम की एक वनकन्या रहती थी। जोकि घने जंगलों में रहती थी। और जंगल के सभी लोग उसके मित्र थे। प्योंली के कारण पूरे जंगल में हरियाली ही हरियाली थी। एक दिन एक देश का राजकुमार जंगल में शिकार करने आया। और उसकी नजर प्योंली पर पड़ी। प्योंली को देखते ही राजकुमार को प्योंली से प्रेम हो गया, और उससे शादी करके उसे अपने देश लेकर आ गया। बहुत समय बीत जाने के बाद प्योंली को अपने मायके की याद आने लगी। उसे जंगल के सारे जानवरों की याद आने लगी। जिसके कारण प्योंली की आंखें भर आई और उधर प्योंली के जाते ही सारे पेड़ पौधे मुरझाने लगे और इसके साथ ही सारे जंगली जानवर उदास भी रहने लगे। प्योंली अपने मायके में खुश नहीं थी, क्योंकि प्योंली की सास उससे बहुत परेशान करती थी। उसके कारण प्योंली हमेशा दुखी रहती थी।
प्योंली जब भी अपने ससुराल वालों से मायके जाने के लिए कहती तो ससुराल वाले उसे हमेशा मना कर देते। और प्योंली मायके की याद में तड़पते तड़पते एक दिन अपने प्राण त्याग देती है। प्योंली के गुजरते ही उसके ससुराल वाले उसे पास में ही दफना देते हैं, और कुछ समय बाद उस स्थान पर एक सुंदर से पीले रंग के फूल का निर्माण होता है। जो कि बाद में चलकर उस फूल का नाम राजकुमारी के नाम पर प्योंली रख दिया जाता है।
तो मेरे भाइयों और बहनों उम्मीद करता हूं कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी अगर कहानी अच्छी लगी तो अपने भाई और बहनों के साथ कृपा करके इस पोस्ट को शेयर करें ,धन्यवाद !
Read more: क्यों मनाया जाता है उत्तराखंड में फूलदेई त्यौहार